हैं राम बसे अंतर्मन में ,
पर रावण भी है घर - घर में ।
मन में राम , रावण मन में ,
सुरासुर संग्राम छिड़े फिर मन-मन में ॥
है द्वेष-दंभ-वासना घृणित,
घट रहा आज जो था अघटित ।
बढ़ते जाते हैं पाप-पतित ,
बढ़ रही समस्या अज्ञान-जनित ॥
दुराचारी बन रहे नरेश ,
ज्ञान नजर नहीं आता शेष ।
हो उठ खड़ा फिर गुडाकेश ,
धरती पर बस जायें गणेश ॥
धरती कहती है यह पुकार ,
सुन ले मेरी तू हे कुमार ।
फ़ेंक स्वार्थ तू आज उतार ,
बढ़ जा समाजहित सुन पुकार ॥
है दिया समाज कितना तुझको ,
दे सका आज तक क्या उसको ।
जो कर सकता तू कर उसको ,
मत धोका दे अब ख़ुद को ॥
ले थाम आदर्शो की मशाल ,
हों उज्जवल अब तेरे ये भाल ।
चल आज मिलाकर कदम ताल ,
साबित कर ख़ुद को देव-लाल ॥
फिर स्वर्ग धारा पर आयेगा ,
कटुता कहीं भी ना समायेगा ।
अज्ञान घटा छट जायेगा ,
स्वर्णिम सूर्योदय आयेगा ॥
तब देव बसेगा आँगन में ,
धरती के इस प्रांगन में॥
पर रावण भी है घर - घर में ।
मन में राम , रावण मन में ,
सुरासुर संग्राम छिड़े फिर मन-मन में ॥
है द्वेष-दंभ-वासना घृणित,
घट रहा आज जो था अघटित ।
बढ़ते जाते हैं पाप-पतित ,
बढ़ रही समस्या अज्ञान-जनित ॥
दुराचारी बन रहे नरेश ,
ज्ञान नजर नहीं आता शेष ।
हो उठ खड़ा फिर गुडाकेश ,
धरती पर बस जायें गणेश ॥
धरती कहती है यह पुकार ,
सुन ले मेरी तू हे कुमार ।
फ़ेंक स्वार्थ तू आज उतार ,
बढ़ जा समाजहित सुन पुकार ॥
है दिया समाज कितना तुझको ,
दे सका आज तक क्या उसको ।
जो कर सकता तू कर उसको ,
मत धोका दे अब ख़ुद को ॥
ले थाम आदर्शो की मशाल ,
हों उज्जवल अब तेरे ये भाल ।
चल आज मिलाकर कदम ताल ,
साबित कर ख़ुद को देव-लाल ॥
फिर स्वर्ग धारा पर आयेगा ,
कटुता कहीं भी ना समायेगा ।
अज्ञान घटा छट जायेगा ,
स्वर्णिम सूर्योदय आयेगा ॥
तब देव बसेगा आँगन में ,
धरती के इस प्रांगन में॥
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