Monday, April 4, 2011

'धर्म' से नाक- भौं ना सिकोड़ें, समझने का प्रयास करें !

आज भारत में अधिकांश तथाकथित पढ़े-लिखे लोग 'धर्म' को निरर्थक और 'संस्कृति' को पिछड़ापन का पर्याय मानने लगे हैं | मूल कारण है, बचपन से ही उन्हें मानसिक रूप से अंग्रेजों के गुलाम बनाये रहने वाली शिक्छाप्रणाली में ही पढ़ना पड़ा, और घर में टी.वी. पर नटों से 'एडवांस' बनने का तरीका सिखा, बस | माता-पिता ने भी 'बड़ा आदमी' बनने और खूब पैसा कमाने के ही सपने दिखाए, धर्म और संस्कृति की बात करना ही दूर रहा | यदि कहीं कोई 'धर्म ' की चर्चा करता हुआ मिला भी तो उससे यही सुन पाया कि धरती के ऊपर कहीं स्वर्ग है और धर्म वहाँ जाने का साधन, जिस पर विश्वास करना उसके लिया संभव नहीं | किसी ज़माने में यह बात कहना भी लाभकारी रहा होगा पर आज के समय में सिर्फ असली रूप में कहना ही सही है | धर्म का अर्थ है - गुण | जैसे पानी का धर्म है, तरल होने | आग का धर्म है, गरम होना | यदि आग गरम ना हो तो हम उसे आग कहेंगे ही नहीं | पानी तरल ना हो तो हम उसे कुछ और कह सकते हैं, पानी नहीं | उसी तरह से मानव का धर्म क्या है , उसे किन गुणों को रखना चाहिए उसी की व्याख्या 'धर्म' के नाम से जानी जाने लगी | अलग-अलग लोगों ने, अलग-अलग जगह पर, अलग-अलग समय में इसकी व्याख्या करने की चेष्टा की जो अलग-अलग नामों से प्रचलित हुए | सबके मूल में एक ही तत्त्व है जिसे हम 'मानवता' कहते हैं | इस तरह, किसी भी धर्म का पालन करने वाला व्यक्ति मूल रूप से सभी धर्मों का पालन एक साथ करता है और जो किसी भी धर्म को नहीं समझता वह धर्म के नाम पर झगड़ा | धर्म का एक और अर्थ है - कर्त्तव्य | लेकिन यह भी पहले वाले अर्थ से अलग नहीं बल्कि उसी का एक अंग है | कर्तव्यों की व्याख्या को भी धर्म कह सकते हैं , और कर्त्तव्य-पालन को धर्म-पालन |

अब यदि धर्म मात्र इतना ही है तो फिर इसमें देवी-देवताओं की क्या आवश्कता ? हम राम को, कृष्ण को , रामकृष्ण को, बुद्ध को क्यूँ मानें ? उनके प्रति श्रधा की क्या आवश्यकता ? आवश्यकता है, हम जिसके प्रति श्रधा रहते हैं उसके गुणों को धारण करते चले जाते हैं | हम कैसे मान लें कि श्रधा रखने से गुण आने लगते हैं ? यह सत्य है, मान लीजिये, प्रयोग से साबित किया हुआ है | पिता के प्रति श्रधा पुत्र में पिता के गुण भर देता है | आज इसके पीछे का सिद्धांत दुनिया के सामने नहीं है, इसका यह तात्पर्य नहीं कि बात गलत है | न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत दिया, उससे पहले भी सेव धरती पर ही गिरता था, आकाश में नहीं जाता था | ..... आगे फिर कभी ....