चला एक शर फिर अर्जुन तू ।
कर जनमानस उन्माद-रहित ।
कर धर्म अंधविश्वास-रहित ।
कर दे विद्या व्यवसाय-रहित ।
कर दे उपासना काम-रहित ।
चला एक शर फिर अर्जुन तू ।
कर दे चरित्र फिर दाग-रहित ।
कर दे दुनिया संताप-रहित ।
कर भूतल को दारिद्रय-रहित ।
कर घर-घर को जंजाल-रहित ।
चला एक शर फिर अर्जुन तू ।
कर कर्म फिर अभिमान-रहित ।
कर दे हृदय विषाद-रहित ।
हो अर्चना फिर माँग-रहित ।
हो भावना फिर राग-रहित ।
कर जनमानस उन्माद-रहित ।
कर धर्म अंधविश्वास-रहित ।
कर दे विद्या व्यवसाय-रहित ।
कर दे उपासना काम-रहित ।
चला एक शर फिर अर्जुन तू ।
कर दे चरित्र फिर दाग-रहित ।
कर दे दुनिया संताप-रहित ।
कर भूतल को दारिद्रय-रहित ।
कर घर-घर को जंजाल-रहित ।
चला एक शर फिर अर्जुन तू ।
कर कर्म फिर अभिमान-रहित ।
कर दे हृदय विषाद-रहित ।
हो अर्चना फिर माँग-रहित ।
हो भावना फिर राग-रहित ।